गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

अपनी खामोशियों की वजह से मे बहुत जगह हारी हूँ ...मैंने बहुत कुछ खोया है ...लोग कहते हैं -बोलने के बाद तो इंसान को बहुत बार पछताना पड़ता है,लेकिन चुप रहने के बाद नहीं जबकि मै पछता रही हूँ अपने चुप रहने पर ...चुप रहकर सबकुछ सहने पर ...लेकिन फिर भी मै अपने अन्दर फैली ख़ामोशी से निकल नहीं पा रही हूँ ...डर लगता है कही नए रिश्ते भी ख़ामोशी की भेट न चढ़ जाएँ ....

3 टिप्‍पणियां:

  1. आरती जी, बहुत दिनो तक भडास ब्लाग पर आपकी क्षणिकाएं पढता रहा हू साथ ही आपका ब्लाग भी तलाशा वेब जगत मे लेकिन नही मिला आज जब आपके ब्लाग का लिंक देखा तो हार्दिक प्रसन्नता हुई यह जानकर कि आपने अपना ब्लाग लेखन शुरु कर दिया है। आपकी रचनाओं शिल्प और सम्वेदना दोनो ही उम्दा होती है इसलिए किसी भी संवेदनशील आदमी को द्रवित कर देती है मैं आपकी क्षणिकाओं का प्रशसंक रहा हूं। आपकी प्रोफाइल से पता चला कि आपने मनोविज्ञान से एम.फिल.किया है इससे आपसे एक विषयगत आत्मीयता का भी बोध हुआ क्योंकि मैने भी मनोविज्ञान से पी.एच.डी. किया है और हालफिलहाल एक विश्वविद्यालय मे मास्टरी कर रहा हूं, आपने जो मन पढने वाली बात लिखी उससे मै भी सहमत हूं। हाँ! एक बात और क्या आपने पवन करण का काव्य संग्रह " स्त्री मेरे भीतर" पढा है ? इसे राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है यदि नही तो मुझे लगता है आपको पढना चाहिए। नेट की औपचारिक और आभासी दूनिया मे अपना भी एक ब्लाग है कभी मन हो जरुर पधारना आपको मानव व्यवहार और मानवीय संवेदना के प्रेम प्रतिरुपो पर कुछ कविताएं पढने को मिल सकती है।
    सम्वाद बना रहेगा..इसी आशा के साथ नवप्रयास के लिए ढेरो शुभकामनाएं
    डा.अजीत
    www.shesh-fir.blogspot.com (शेष फिर )

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  2. i have not read the mentioned book but read about it and willing to read it soon.thanks.

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  3. kuch ab muche lagta hai k mai bhi khamosh ho jau kuki mai jada bolti hu.lagta hai duniya unhi k peeche jada padti hai jo emandar aur naram dil k hote hai.kyuke unhe hilana asaan hota hai

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