बुधवार, 6 जनवरी 2010

बहुत हो गया

बहुत हो गया / तुम्हारी उपेक्षा पर/मेरा चुप रहना /और छुपा जाना तुम्हारा /अपनी भावनाओं को । /बहुत हो गया /जो नहीं हूँ /खुद को दिखाना /और ख्वाहिश करना /पाने को तुम्हारा प्यार /शर्तों पर तुम्हारी । /बहुत हो गया /naitrogen बम की तरह /अन्दर-अन्दर /मेरा टूटना-बिखरना /और शांत नजर आना /बाहर से ।
परिंदे एक आशियाँ टूटने पर जितनी सहजता से दूसरा आशियाँ बनाने में जुट जाते है ,इन्सान उतनी सहजता से तो आशियाँ में रहना भी कभी नहीं सीख पाता ।
जीवन में बहुत से आश्चर्य हमने-आपने देखे होंगे लेकिन अगर कभी गंभीरता पूर्वक सोचेंगे तो पाएंगे-जीवन से बड़ा दूसरा कोई आश्चर्य नहीं ।
जीवन में अगर ख़ुशी चाहते हैं आप तो सतहीपन में जीना शुरू कर दीजिये ...हर तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ नजर आएँगी ..आप उन्हें छू पाएंगे ...जी पाएंगे ...लेकिन प्लीज़ भूलकर भी गहराई की ओर रुख मत कीजियेगा ...
कभी-कभी हम अपने आपको बिलकुल असहाय महसूस करते है ;अपनों के न होने के कारण नहीं बल्कि उनके अपनों जैसा न होने के कारण।
हमारी महत्ता कम न हो , बहुत बार इसलिए हम दूसरों को आत्मनिर्भर नहीं बनने देते ।
हमे देवता की दरकार तो होती है लेकिन मंदिर में ,अपने घरो में नहीं ।

सोमवार, 4 जनवरी 2010

कितनी अजीब बात है मेरे माता-पिता इस बात के लिए हद से ज्यादा सतर्क रहते है की मेरे संपर्क में कोई पुरुष [बच्चा ] न आ पाए और विशेष तौर से बिगडैल बच्चे जबकि मैंने अपने जीवन का उद्देश्य बना रखा है - भटके हुए को राह पर लाना ।
यह सही है की दूर से हमे कुछ चीजे दिखाई नहीं पड़ती लेकिन यह भी कम सच नहीं है की पास पहुच कर हम वे चीजे नहीं देख पाते जो दूर रहकर देख लेते है ।
जिन चीजो से हम जिन्दगी भर भागते है , कोई बड़ी बात नहीं यदि जिन्दगी के किसी मोड़ पर पहुच कर हम उन्ही चीजो की दुआ करने लगे ।
किसी वस्तु की कीमत उसकी जरुरत से तय होती है न की बाज़ार मूल्य से ।