शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

इस दुनिया में हर इंसान परेशान है और सोंचता है कि दूसरा यह समझे कि वह परेशान है।
१३.०९.२०१०

स्त्री चाहे तो किसी पुरुष को इंसान बना सकती है और चाहे तो जानवर । लेकिन अफ़सोस ज्यादातर स्त्रियाँ पुरुषों को जानवर बनाकर ही छोडती हैं; खासकर तब जब सामने वाला उनके सामने याचक की मुद्रा में होता है। 22.०९.२०१०


कभी न ख़त्म होने वाला जुडाव अक्सर वहां शुरु होता है जहाँ रिश्ता ख़त्म हो जाता है।
१७.०४.२०१०


जो लोगों से झूठ बोलते हैं , वह अपने आप से भी सच नहीं बोल पाते ।
२८.०४.२०१०


लोग सामने वाले पर विश्वास करने से डरते हैं कि कहीं वह उन्हें धोखा न दे दे लेकिन मुझे dar नहीं लगता क्योंकि खोने के लिए मेरे पास कुछ है ही नहीं। ०४.०९.२०१०

गुरुवार, 18 मार्च 2010

ख़ुशी


तुम्हारे मुख से यह सुनकर

कि ख़ुशी रो रही है

मैंने अनायास कह तो दिया

कि ख़ुशी भी कहीं रोती है

लेकिन तभी ख्याल आया

हाँ ख़ुशी भी रोती है

चाहे वह माँ की देह से बनी

हाड़- मांस की ख़ुशी हो

चाहे ह्रदय से उपजी

कोमल जज्बातों की

टूटने का दर्द


ट्रान्सफर होने पर तुमने कहा

नाजुक और टूटने वाली चीजों को

तुम सहेज लो

मैंने पूंछा

मैं ही क्यों ?

तुमने कहा

तुम किसी चीज को टूटने नहीं दोगी

क्योंकि तुम टूटने का दर्द जानती हो

मैने कहा

यदि फिर भी मुझसे कुछ टूट गया तो !

तुमने कहा

तो भी कोई बात नहीं

क्योंकि टूटकर बिखरे हुए को

सहेजने का हुनर भी जानती हो तुम।

आरती "आस्था "

सोमवार, 15 मार्च 2010

वर्णमाला


बचपन में ही

सिखा दी जाती है हमें

वर्णमाला

वर्णमाला -

हिंदी की

वर्णमाला -

अंगरेजी की

उर्दू फारसी आदि की

वर्णमालाएं भी

हम सीख लेते हैं

अपनी संस्कृति के अनुसार

लेकिन कोई भी वर्णमाला

नहीं सिखा पाती हमें

जिन्दगी की वर्णमाला के

एक एक वर्ण पर अंकित

एक एक पल की जिन्दगी को समझना

काश की

हिंदी अंग्रेजी उर्दू की

वर्णमालाएं सिखाने की वजाय

सिखाई जाती हमें

जिन्दगी की वर्णमाला

तब दे पाते हम

न केवल जिन्दगी को

बल्कि वर्णमाला को भी

नए मायने .........

आरती आस्था

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

अपनी खामोशियों की वजह से मे बहुत जगह हारी हूँ ...मैंने बहुत कुछ खोया है ...लोग कहते हैं -बोलने के बाद तो इंसान को बहुत बार पछताना पड़ता है,लेकिन चुप रहने के बाद नहीं जबकि मै पछता रही हूँ अपने चुप रहने पर ...चुप रहकर सबकुछ सहने पर ...लेकिन फिर भी मै अपने अन्दर फैली ख़ामोशी से निकल नहीं पा रही हूँ ...डर लगता है कही नए रिश्ते भी ख़ामोशी की भेट न चढ़ जाएँ ....

शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

सच में सबकुछ पहले से तय होता है ...हमारा हर आंसू ,हमारी हर खिलखिलाहट पहले से तय की जा चुकी होती है । हमारे साथ घटी हर छोटी -बड़ी चीज का कोई मतलब होता है ...इस जिन्दगी में कुछ भी बेमायने नहीं होता ...कुछ भी बेमकसद नहीं होता ...

बुधवार, 6 जनवरी 2010

बहुत हो गया

बहुत हो गया / तुम्हारी उपेक्षा पर/मेरा चुप रहना /और छुपा जाना तुम्हारा /अपनी भावनाओं को । /बहुत हो गया /जो नहीं हूँ /खुद को दिखाना /और ख्वाहिश करना /पाने को तुम्हारा प्यार /शर्तों पर तुम्हारी । /बहुत हो गया /naitrogen बम की तरह /अन्दर-अन्दर /मेरा टूटना-बिखरना /और शांत नजर आना /बाहर से ।