गुरुवार, 18 मार्च 2010

ख़ुशी


तुम्हारे मुख से यह सुनकर

कि ख़ुशी रो रही है

मैंने अनायास कह तो दिया

कि ख़ुशी भी कहीं रोती है

लेकिन तभी ख्याल आया

हाँ ख़ुशी भी रोती है

चाहे वह माँ की देह से बनी

हाड़- मांस की ख़ुशी हो

चाहे ह्रदय से उपजी

कोमल जज्बातों की

टूटने का दर्द


ट्रान्सफर होने पर तुमने कहा

नाजुक और टूटने वाली चीजों को

तुम सहेज लो

मैंने पूंछा

मैं ही क्यों ?

तुमने कहा

तुम किसी चीज को टूटने नहीं दोगी

क्योंकि तुम टूटने का दर्द जानती हो

मैने कहा

यदि फिर भी मुझसे कुछ टूट गया तो !

तुमने कहा

तो भी कोई बात नहीं

क्योंकि टूटकर बिखरे हुए को

सहेजने का हुनर भी जानती हो तुम।

आरती "आस्था "

सोमवार, 15 मार्च 2010

वर्णमाला


बचपन में ही

सिखा दी जाती है हमें

वर्णमाला

वर्णमाला -

हिंदी की

वर्णमाला -

अंगरेजी की

उर्दू फारसी आदि की

वर्णमालाएं भी

हम सीख लेते हैं

अपनी संस्कृति के अनुसार

लेकिन कोई भी वर्णमाला

नहीं सिखा पाती हमें

जिन्दगी की वर्णमाला के

एक एक वर्ण पर अंकित

एक एक पल की जिन्दगी को समझना

काश की

हिंदी अंग्रेजी उर्दू की

वर्णमालाएं सिखाने की वजाय

सिखाई जाती हमें

जिन्दगी की वर्णमाला

तब दे पाते हम

न केवल जिन्दगी को

बल्कि वर्णमाला को भी

नए मायने .........

आरती आस्था