रविवार, 13 सितंबर 2009

भड़ास blog: ग़लतफ़हमी में#links

भड़ास blog: ग़लतफ़हमी में#links

गलतफहमी में

आरती "आस्था"
हम मिलते हैं....
बात करते हैं.....
लेकिन नहीं होता
जब कभी
हमारे पास
बोलने के लिए कुछ
(हालांकि कमी नहीं है हमारे पास शब्द भावनाओं की)
और पसरने लगती है खामोशी
हमारे दरम्यान
तो भागने लगते हैं हम
एक-दूसरे से
भागना जो नहीं चाहते
एहसास में भी
और खामोशी
एहसास कराती है
एक दूरी का
हमारे बीच......
वास्तव में बैठ गया है
एक डर हममें
कुंडली मारकर
जो न बोलने देता है
और न ही
रहने देता है चुप....
कि कहीं खो न दें हम
किसी गलतफहमी में
एक-दूसरे को।

शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

खास


जूझ रहा था
जब कोई
जिन्दगी और मौत से
तुब मैं
अपने आप से
देखकर बेचैनी मेरी
किसी और ने पूंछा मुझसे
क्या कोई ख़ास है
मैं चुप रहीं
बताना जो नहीं चाहती थीं उसे
आम कोई होता ही नही
मेरे लिए ................. ।

शनिवार, 5 सितंबर 2009

मोह

आरती "आस्था"
मोह बहुत करती हूं मैं
निर्मोही भी कम नहीं हूं लेकिन
हर उससे मोह है मोह की हद तक
जिंदा है इंसानियत जिनके अंदर
वहीं दूसरी ओर
पल भर में
खत्म हो जाते हैं सारे मोह
उसके प्रति
दिखा नहीं पाता जो
सहज मानवता भी
फिर भले ही दुनियां ने
बांध दिया हो मुझे उससे
किसी भी रिश्ते से
मोह नहीं बांध पाता मुझे.......।

शुक्रवार, 4 सितंबर 2009

मेरी diary से

आरती आस्था
1.कुछ लोग दूसरों से कुछ भी लेने में घबराते हैं, क्योंिक िकसी को कुछ दे सकें इतना बड़ा िदल उनका होता नहीं।
2. हर िकसी का अपना भाग्य होता है इसलिए न तो अपने भाग्य को कोसो और न िकसी और के भाग्य से ईष्यार् करो।
3. परिवर्तन समय का मोहताज नहीं होता है, यह हो सकता है िक जो चीज बरसों न बदली हो वह एक पल में बदल जाए।
4. हम अपरिचितों से नहीं, अपने परिचितों से डरते हैं।
5. जो चुकाता रहता है ......चुकाता रहता है उसे भी कभी तो कुछ न कुछ जरुर िमलता होगा।
६.मित्र बनिए, न संरक्षक न उपदेशक न ही कुछ और क्योंकि एेसा करके आप दे पाएंगे संरक्षण, सुनी जाएगी आपकी हर बात और जुड़ा महसूस करेंगे लोग आपसे उस समय भी जब अलग-थलग पाएंगे वे खुद से ही खुद को।
७.जब हम जिंदगी में एेसा उद्देश्य लेकर चलते हैं जिसे और लोग भी पाना चाहते हैं तो प्रतिस्पर्द्धा के कारण उद्देश्य प्राप्ति कठिन होती है लेकिन जब बिलकुल अलग उद्देश्य बनाते हैं जिंदगी का तो भी उसे प्राप्त करना कठिन होता है क्योंकि तब लोग हमारे उद्देश्य के साथ ही साथ हमें भी शक की नजर से देखते हैं।

गुरुवार, 3 सितंबर 2009

हार

आरती "आस्था" कानपुर
हारना-
अलग-अलग होता है
हर इंसान का
कोई हारता है कुछ
कोई कुछ
तो कोई हार जाता है
हार के साथ ही
अपना सबकुछ
मैं.....।
इन्हीं हारने वालों में हूं।