गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

अपनी खामोशियों की वजह से मे बहुत जगह हारी हूँ ...मैंने बहुत कुछ खोया है ...लोग कहते हैं -बोलने के बाद तो इंसान को बहुत बार पछताना पड़ता है,लेकिन चुप रहने के बाद नहीं जबकि मै पछता रही हूँ अपने चुप रहने पर ...चुप रहकर सबकुछ सहने पर ...लेकिन फिर भी मै अपने अन्दर फैली ख़ामोशी से निकल नहीं पा रही हूँ ...डर लगता है कही नए रिश्ते भी ख़ामोशी की भेट न चढ़ जाएँ ....

शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

सच में सबकुछ पहले से तय होता है ...हमारा हर आंसू ,हमारी हर खिलखिलाहट पहले से तय की जा चुकी होती है । हमारे साथ घटी हर छोटी -बड़ी चीज का कोई मतलब होता है ...इस जिन्दगी में कुछ भी बेमायने नहीं होता ...कुछ भी बेमकसद नहीं होता ...