शनिवार, 31 जनवरी 2009

यथार्थ.......


तुमने कहा
कष्ट में इंसान
कुछ भी कह जाता है
मै समझ गई की
की मैंने कुछ ग़लत कह दिया है
तब मैंने कहा
लेकिन कष्ट मे इन्सान
बहुत बार
चुप भी तो रह जाता है
ये सुनकर
तुम चुप हो गये
अब मैं क्या समझू?

शनिवार, 10 जनवरी 2009

आरती "आस्था"


तुम कहते हो कि

हर किसी की

प्रार्थना के दौरान

जलना पड़ता है तुम्हे 

और हर बार ही 

होता है तुम्हारा अवमूल्यन  

क्योकि प्रार्थना की  

स्वीकृति के साथ ही  

ख़त्म हो जाता है  

तुम्हारा महत्व...................  

तुम्हारा अस्तित्व..............  

जबकि सच यह है कि  

कभी नही होता खत्म  

मेरा अस्तित्व  

क्योकि औरो से इतर  

अनवरत चलने वाली है  

मेरी अपनी प्रार्थना  

जिसमे शामिल है  

हर किसी की  

अनसुनी प्रार्थना  

और जिसे कहते हो  

तुम अवमूल्यन मेरा  

उसे मैं मूल्यवर्धन  

क्योकि हर बार  

प्रार्थना की स्वीकृति के साथ ही  

बढ़ जाता है  

मेरा मूल्य  

मेरी अपनी नजरो मे ....................!

लिखावट.....

लिखावट

हाथो से
जो नही लिख पाते हम
लिखने की कोशिश करते है 
बहुत बार 
आंसुओ से 
इस आस में 
कि शायद  
लिख जाए कुछ ऐसा 
जो न लिखा गया हो
अब तक 
हमारी किस्मत में...........................!

और अब एहसास .................

और अब एहसास .................

१८.०९.२००७  

यह सही है कि हर किसी को उसकी पात्रतानुसार ही मिलता है ,मिलना भी चाहिये. लेकिन प्यार देने के लिए पात्रता का ध्यान नहीं रखा जाना चाहिये | हो सकता है आपका प्यार उसे पात्र बना दे |

२८.१०.२००७ 

जिंदगी इम्तहान नहीं केवल इम्तहान लेती है और अगर आपके अन्दर सफल होने के लिए अपेक्षित जुझारूपन, धैर्य और समझ नही है तो पक्का मानिये आप खोएंगे और इस हद तक खोएंगे कि एक दिन आपके पास खोने के लिए भी कुछ नहीं बचेगा |

 ०८.११.२००७

यथार्थ से यथार्थवादी इंसान किसी न किसी से कहीं न कहीं भावनात्मक रूप से जुदा जरूर होता है | 

२९.११.२००७

 हमारे बहुत से निर्णय हमारी मन:स्थिति पर निर्भर करते हैं |

२८.०७.२००८

जिसकी जिंदगी में आप कोई महत्व नहीं रखते वह भी आपकी उपेक्षा से आहत होता है |

०१.१२.२००८

कोई भी  दो इंसान एक- दुसरे के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण नहीं हो सकते |

११.१२.२००८

जब अन्दर  शान्ति होती है तो बहार शोर अच्छा नहीं लगता है | और जब अन्दर शोर होता है तो बहार कि शान्ति झेलना बहुत मुश्किल हो जाता है |

१७.१२.२००८ 

 जिदगी के सच के सामने दुनिया के सारे सच बेमानी होते हैं |

 १८.१२.२००८

 बहुत बार वाही लोग हमें बिल्कुल नहीं समझते जो बहुत ज्यादा समझते हैं |

२०.१२.२००८ 

कभी - कभी इन्सान कुछ लोगों से दूर इसलिए भागता है क्योंकि वह नहीं आना चाहता है अपने  ही करीब | 

२३.१२.२००८

 किसी की इतनी ज्यादा परवाह न करो कि उसे तुम्हारे सही होने पर शक होने लगे |

३०.१२.२००८

विश्वास किसी भी रिश्ते के लिए जरूरी होता है , सही है लेकिन इस विश्वास की जरूरत दिल के रिश्ते में ज्यादा होती है बनिस्पत खून के रिश्ते के |

३०.१२.२००८

कितनी  अजीब होती है वह स्थिति जब कोई इंसान एक ही समय रोना और हँसना दोनों चाहे | वैसे कितनी  ही अजीब क्यों न हो यह स्थिति जिन्दगी में आती कई बार है |

 १९.०१.२००९

समझदारी  वास्तव में .बेवकूफी के सिवाय कुछ और नहीं है क्योंकि यदि आप समझ्दार (बेवकूफ) हैं तो आप ऐसे बहुत से कार्य नहीं करेंगे यहाँ तक कि सोच के स्तर पर भी जिनसे आपको खुशी मिल सकती है और दूसरे को बहुत ज्यादा कष्ट भी नहीं होगा |  

२१.०१.२००९

बहुत बार  चीजें टूटती- बिखरती हैं केवल इसलिए कि और मजबूती से जुड़ सकें ........ इसलिए कि कुछ चीजें ग़लत जगह ...... ग़लत तरह से जुड़ गई होती हैं और हमने उन्हें ही सही मान लिया होता है ........ भगवान चाहता है कि उन गलतियों को भी सुधार लें हम ............ वह हमें एक अवसर देता है चीजों को तोड़-बिखराकर ......... उस अवसर को खोना नहीं चाहिए हमें |

 २३.०१.२००९

जहाँ से हम भाग जाना चाहते हैं वहां हमें कोई (अद्रश्य शक्ति ?) रोक लेती है और जहाँ ठहर जाना चाहते हैं , वहां से हमें जाना ही पड़ता है |

२४.०१.२००९

 विलुप्तप्राय: चीजें विलुप्तप्राय: लोगों को मिलती रहती हैं |

२५.०१.२००९ 

लोग शब्दों पर ध्यान देते हैं भावनाओं पर नहीं |

२६.०१.२००९

इन्सान की पहचान इतनी ज्यादा महत्वपूर्ण होती है कि वह इसके लिए बड़ी से बड़ी कीमत चुकाने के लिए तत्पर रहता है | यूँ ही किसी रोज यह सही है कि एक समझदार व्यक्ति हर किसी से एक निश्चित दूरी बनाकर चलता है लेकिन इस दूरी का विस्तार उन व्यक्तियों के बीच ज्यादा होता है जिनमें पूर्व में कभी घनिष्टता रही होती है | .

 -जब आप सच बोल रहे हों और कोई आप पर विश्वास नहीं कर रहा हो तो आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह आपकी समस्या नहीं है बल्कि विश्वास न करने वाले की है | लेकिन जब आप झूठ बोल रहे हों और आपका अपना कोई आप पर विश्वास न करे तो आपको सोचने की जरूरत है कि ऐसी कौन सी चीज है जो आप सही अनुपात में अपने रिश्ते को नहीं दे पाए |

-व्यस्तता ! कितना उपयुक्त शब्द है दूसरों की उपेक्षा करने का और वह भी बिना किसी शिकायत का मौका दिए |

- जिंदगी  अक्सर हमें वह सिखाती है जो हमारे लिए जरूरी होता है न कि वह जो हम जरूरी समझते हैं |

- बहुत  से इन्सान उस चीज का विरोध करते हैं जिसका वास्तव में वह विरोध नहीं करना चाहते हैं  ऐसा करना का कारण कुछ और नहीं उनका वह होने की दिशा में बढाया गया पहला कदम होता है जो वह होना चाहते हैं लेकिन होते नहीं |

- जो बहुत  मजबूत होता है वही रेजा- रेजा टूटकर बिखरता भी है |

- हमारे  साथ अच्छा - बुरा जो भी होता है वह महज भूमिका होती है हमारे वह बनने की जो कि ईश्वर हमें बनाना चाहता है, हमारे वहां पहुँचने की जहाँ कि ईश्वर हमें पहुँचाना चाहता है |

- अक़्सर  जिन्दगी में सब कुछ होता है सिवाय जिन्दगी के |

गुनाह करके सजा पाना और  बिना गुनाह के सजा पाने में मूलभूत अन्तर यह होता है कि पहली स्थिति में केवल एक बार सजा मिलती है और जिसको कष्ट पहुँचता है उसकी ओर से मिलती है | लेकिन दूसरी स्थिति में हम बार-बार सजा पाते हैं और वो भी अपने आप से | हाँ , वह एक टीस..... कसक .......... जो मन में रह जाती है हमेशा के लिए जब-तब सिर उठाकर परेशान करती रहती है हमें कहकर कि कितना अच्छा होता कि वह गुनाह हमने कर लिया होता ..........| सोच के स्तर पर भी जब हमने अपशब्द न किया हो ( कार्यरूप में परिणति तो दूर कि बात ) तब भी हमें सजा मिले .......... मिलती है ..... ऐसे में अच्छा तो यही है कि हम जी भरकर जियें ........जीभरकर गलतियाँ करें........वैसे भी कहा तो जाता ही है ' टु एर्रोर इज ह्यूमन ' एक बात और उनसे कोई गलती नहीं होती जो कोई काम नहीं करते, लेकिन आपको क्या लगता है - ऐसे लोग वास्तव में कोई गलती नहीं करते ? जी हाँ , वे कुछ न करके इतनी बड़ी गलती करते हैं कि दूसरी किसी गलती को मौका ही नहीं देते ...........| कोई दूसरी गलती उनके सामने टिकती ही नहीं है| यह जरूर है कि कुछ गलतियाँ ऐसी होती है जिनकी सजा यदि इन्सान को जीवन भर दी जाए तो भी कम है ........|

- "खोना नहीं चाहती तुम्हें इसलिए नहीं की कभी कोशिश पाने की भी क्योंकि यदि पा लिया तो खोना  तय है |"