आरती* आस्था* कानपूर
३१.०७.२००९
जिन्दगी चाहे कितनी मुस्किल क्यों न हो उसे जीना ही पड़ता है।
०३.०८.२००९
हम बहुत बार चुप रहते हैं बहुत कुछ बोलने के लिए ........ बहुत बार चुप्पी के माध्यम से और बहुत बार भविष्य में एकमुश्त बोलने के लिए.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें