शुक्रवार, 6 मार्च 2009

चाभी

जैसे तालों को खोलने के  लिए

होती हैं  चाभियाँ

काश वैसे  ही होती  चाभियाँ

परत-दर-परत  चेहरों  को खोलने के लिए भी

तब सहज होती

अपने-पराये की पहचान

तब न कदम-कदम पर

छले जाते हम

और न दोष  देते किस्मत  को .............|

2 टिप्‍पणियां:

  1. आरती जी, आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया.
    बहुत अच्छा लगा.
    सरल शब्दों में अपनी भावनाओं को बड़े ख़ूबसूरत तरीके से व्यक्त करती हैं आप.

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  2. होली के इस रंग-बिरंगे पर्व पर आपको व् आपके परिवार के समस्त सदस्यों को हार्दिक बधाई ........
    आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया.
    बहुत अच्छा ब्लाग है

    जवाब देंहटाएं